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खोरठा लघु नाटक

         खोरठा लघु नाटक

  गुरूक महानता आर सहनता

(परसतुत नुक्कड़ नाटक जे तोहीन के ठांवे राखल जाय रहल हे, उ एगो गुरूजीक महानता आर सहनता के देखाल गेल हे । वइसे त सोब लोक जानबे करऽहथ की गुरूजी सब सोब के गियान बाटे हे , आर ओखिन के गियान दानीयो कहाइल जाहे  । जेकर ले कोन्हो भी छउवाके एगो बेस डहर देखवेक काम करऽहथ । त आवा देखब की गुरूजी सब कर केतना महानता आर सहनता हेवे हे । )
         पात्र परिचय –
1.कांशीनाथ – एगो इसकुलेक मास्टर ।
2.कांधना  -  लउतन पढवइया छउवा ।
3.गंधीया -  पढवइया छउवा ।
4.आरो आरो पढवइया छउवा रहऽहथ ।
      जनी पात्र -
1.रुसनी – पढवइया गिदर ।
2.बुधनी सोमरी मंगरी रोपनी सुगीया आरो आरो पढवइया छउवा रहऽहथ ।

जघऽ -
(  इसकुलेक आंगनाय दु चाइरगो छउवा खेलऽहथ , दोउडो हथ आर कुइछ छउवा बाढीन लइके बाढोऽ हलथ ।सय समय गुरूजी आवे हे ।)

कांशीनाथ – ऐ छउवा तोहीन की ले खेइल रहल हिया । जा जा क्लासे बइठे के लिखबाय पढबाय । पइढके गियान भेतो , नोउकरी करबाय ! सुखे रहबाय ।
( सब छउवा छोइड छाइड के क्लासे बइठ जा हथ किताब कोपी लय के । आंगनाय गरदा देइख गुरुजी कहऽ हथ ।) आइज कालुक छउवा पढऽहथ कम गरदा बेसी करऽहथ। आछा हाम्ही तनी बाइड देही ।
 
(सय  समञे कांधना आवे इसकुल पढे खातिर
 आर उ  बेचरांगाय  कोन्हो   जानबे नाञ करे हे।)

कांधना – ( हिन्धे – हुन्धे देइख के )  कांहा पायबय रे बाप गुरूजी के , कइसन रहय गुरू , तोहीन जान्हीया  कि गुरूजी कांहा रहऽहथ । आछा एगो लोक पाइल हिये , एकराय पुछले काम देतय ।

( गुरूजी ,  इसकुलेक आंगनाय गरदा सब के बाइड रहल हथ । )

कांशीनाथ – ओ हो छउवाके केतनो कहले छउवासब आर गरदा करे छोडोहथ नाय ।
कांधना – ऐ हो तोञ देखल ही गुरू के , गुरू कांहा पावाय , कइसन रहय आर कोन्हो चिन्हा रहय ना किना । आञ हो गुरु के देखल हिया । ऐ काका गुरू के देखल ही ।
  ( तीन चाइर बेइर कहल बादोव कोन्हो साडा सबुत नाञ दे हथ । तखन कांधना रागाय जा हे।)गुरूजीके देखल ही की नाञ हो... कोन्हो जे नाञ बोले हे.... हमरा लागे हे , ई लोकवा बहिरा लागय । आछा तनी मारी देखो हिये जदी केसो सुनताय हेले । ( तावो गुरूजी नाञ सुने हे आपन कामे लीन लीन हे ।) आछा देखये तनी जेठा कहीके  , काका ...ऐ ....काका , आजा....  ऐ... आजा  , ऐहो.... बुढा गुरू के  देखल ही । ( नाय सुने हे तखन दु - तीन बेइर माइर दे हे । आर क्लासेक बाटे चइल जा हे , जहां छोउवा पइढ रहल हथ ।)
गंधीया -  हे... रे ...कांधना आइज तोहु आइल हे पढे खातिर .....।
कांधना – हां  ।आछा...  तोहीनो लिखा - पढा करोहिया नाञ  । हाम्हु आइल ही लिखा - पढा करे खातीर हेदे देखे हें ,  हाम्हु सिलोइट , रोल मेटवा, कोपी आर जखन पानी पियास लागतय न तखन पानी पीये खातीर पानीक बोतलो आनल ही । आछा तोहीन मास्टर के देखल ही , कउन मास्टरे तोहीन के गियान सिखवो हो ।
रूसनी -  ओ.. हो.. त.. नाय देखे पाल्हीं.. जे डहर टाञ बाडहो  हलो ।
मंगरी – हा रे... कांधना नाञ सुजलो , आंइख टा मुन्दी के पार भेल रहे न की ?
कांधना – ऐ माइरी ....ओह टाय गुरूजी  हलो.. (सुइन के होस उइड गेल आर मने - मने भाभे लागे हे । मुडे हांथ धइरके बइस जाहे ।  ) ऐ बाप.. रे ..बाप.. ओकरा मारल हिये, पिटल हिये , आर त आर बुढा - खुढा  सब जे कही देल हिये । हामर की...। हामे त कोन्हो जानबे नाय करीये । ऐ माइरी पाछे कोन्हो राग
           भेल हय न की । ठेपसे त जे भेतय जखन गलत करल ही तखन त कोन्हो उपाय नाञ ।
      ( कांधना गुरूजी ठांवे जाय के  उनखर गोडे गिइर के )
          गुरूजी गोड लाग हीयोन।
कांशीनाथ – ( कांधनाके उठवे हे )   खुस रह बेटा.. बोल की भेलो , आर की ले कांइध रहल हे ?
कांधना – गुरूजी तोहीन के हाम मारलीयोन पीटलीयोन कोन्हो राग नाञ भेलोन ?
कांसीनाथ – बोका कहीके.... इटाञ राग किनाक लागतय । लोक जदी पेठीया जाय त हाडी लियेक समञे देखे हे की  पाछे  काहुं  बांगल हय...  टुटल हय... दरकल हय फाटल हय... भुरकी हय .. आर न पाछे करिया हय सब देइख लऽ हथीन ....।  काहे जान्हीये ? 
कांधना – काहे गुरूजी ?
कांसीनाथ – काहे की ओकर मे पइसा दय के लेगऽ हथीन आर ओकर मे दाइल भात तीयन बनाय के खा हथीन ।  तऽ हमरा माइर पिट के नाञ देखभे की हाम तोर गुरू बनेक लाइक हियो की नाय हियो , जान्हीये काहे ले ?
कांधना – काहे गुरूजी ?
कांसीनाथ – काहे की ...  तोञ सब काम छोइड के पढे खातीर समञ देभी आर गियान भेतो ।
कांधना – आछा ! आबरी बूझलीये । मनतुक गुरूजी हाम त सुनल ही वेद पुरान मे आर त हामर आजा आजीयो ।  कहऽहथ की गिआन लेबे ताव मोरबे, नाञ लेबे ताव मोरबे ,तबे  गिआन लयके कि फायदा भेतय।
कांहु  काम कइर के आपन जिनगी बिताय लेब ।
कांशीनाथ – आछा बेटा तोञ हवा देखल हे ।
कांधना -  हां ,  गुरूजी उटा कोन्हो कहेक बात लाय ।
कांशीनाथ – जखन चाइरो बाटे हवा बहे हे , फेइर पंखा लगाइके की फायदा ? कहीं ठडुवाइ के हवा लय ले तले ।
कांधना – गुरू बाबा पंखा लगाव गेले गोटे घर परीवारेक हवा मिलय आर एक संगे बइठ के हवा कर आनन्द लय ही ताकर बादे माछी नाञ लागे हे सय खातीर पंखा लगाव हिये ।
कांसीनाथ – बेटा,  ठीक ओहे रकम लिखा पढा करले गिआन मिले आर गिआन से गुनगान हेवे हे । नोउकरी लागे  हे आर घर परिवारेक संगे सुखी रहबे संगे - संग देशेक बिकास हेतय । सय खातीर गिआन ले हथ,  बेटा सय खातीर गिआन ले हथ ।
      
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लेखक :-
संदीप कुमार महतो
खोरठा शोधार्थी
जनजातीय एंव क्षेत्रीय भाषा विभाग,
राँची विश्वविद्यालय ,  राँची