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खोरठा हमराक मातृभाषा : कुड़माली के महान साहित्यकार लक्खीकांत महतो

कुड़माली के महान साहित्यकार लक्खीकांत महतो,जिनके जन्मदिन को कुड़माली दिवस मनाई जा रही है वे 1977 तक खोरठा कवि के रूप में जाने जाते थे। झारखंड ऐतिहासिक सांस्कृतिक पत्रिका 'शाल पत्र' के प्रवेशांक (1977) में इनकी एक अहम लेख और दो कविताएँ प्रकाशित हैं। लेख का शिर्षक ही है,'खोरठा हामराक मातृभाषा'
बाद में कुड़माली खेमें में चले गये और कुड़माली में सक्रिय हो गये,उन्हें लगा कि इससे एक साथ साहित्य के साथ साथ जाति आंदोलन में भी स्थापित हो सकते हैं,और हुआ भी।अगले ही बर्ष म ई 1978 में रांची में हुई झारखंड बुद्धिजीवि सम्मेलन में इन्होंने अंगद महतो के साथ कुड़माली का प्रतिनिधित्व भी किया।
इस अहम सम्मेलन में खोरठा का प्रतिनिधित्व ए के झा और प्रो.नरेश नीलकमल ने की थी।
यह वह दौर था जब श्रीनिवास पानुरी के बदौलत खोरठा स्थापित  हो चुकी थी और कुड़माली के लोग नाच झुमइर में ही मगन थे।
बाद में जितने एक से एक कुरमी रचनाकार खोरठा में जुड़ते चले गये जिन्होंने भाषाई स्तर पर खोरठा लेखन को ऊँचाई तक पहुँचाया इसमें चितरंजन महतो चित्रा,श्याम सुंदर महतो'श्याम',डा.बी एन ओहदार,डा.भोलानाथ महतो,डा.पारसनाथ महतो आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।