झारखण्ड की पहचान उसकी प्राकृतिक संपदा, जनजातीय संस्कृति और विविध परंपराओं से है। लेकिन किसी भी समाज की असली आत्मा उसकी भाषा और ज्ञान परंपरा होती है। यदि भाषा खो जाए तो लोककथाएँ, गीत, जीवनदर्शन और पहचान भी लुप्त हो जाते हैं। इसी सत्य को समझते हुए झारखण्ड के युवा लेखक देव कुमार ने अपने लेखन को भाषा संरक्षण और सांस्कृतिक अस्मिता को समर्पित किया।
आज वे न केवल एक लेखक बल्कि भाषाई संरक्षक और सामाजिक प्रेरक के रूप में स्थापित हैं। उनकी दो महत्वपूर्ण कृतियाँ — “बिरहोर–हिन्दी–अंग्रेज़ी शब्दकोश” और “मैं हूँ झारखण्ड” — ने उन्हें साहित्य जगत में एक विशेष स्थान दिलाया है।
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बिरहोर–हिन्दी–अंग्रेज़ी शब्दकोश: लुप्तप्राय भाषा की संजीवनी
देव कुमार की पहली और सबसे अनूठी उपलब्धि है उनकी कृति “बिरहोर–हिन्दी–अंग्रेज़ी त्रिभाषीय चित्रात्मक शब्दकोश”।
🔹 बिरहोर भाषा का महत्व – बिरहोर जनजाति भारत के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) में आती है। इनकी भाषा लुप्तप्राय है और अब बहुत कम लोग ही इसे बोल पाते हैं। यह स्थिति चिंताजनक थी।
🔹 देव कुमार का प्रयास – उन्होंने बिरहोर शब्दों को हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनुवादित करके चित्रों सहित प्रस्तुत किया। इस अनूठे प्रयास से यह शब्दकोश केवल शोधार्थियों या अकादमिक जगत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बच्चों और सामान्य पाठकों के लिए भी रोचक बन गया।
🔹 राष्ट्रीय मान्यता – इस शब्दकोश को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की भारतवाणी परियोजना में शामिल किया गया है। भारतवाणी का उद्देश्य है भारत की सभी भाषाओं को डिजिटल माध्यम से सुलभ कराना। इस परियोजना का हिस्सा बनकर बिरहोर भाषा को वह मंच मिला जिसकी उसे लंबे समय से प्रतीक्षा थी।
यह उपलब्धि केवल लेखक की नहीं, बल्कि पूरे बिरहोर समुदाय और झारखण्ड राज्य की गौरवपूर्ण धरोहर है।
मैं हूँ झारखण्ड: अस्मिता और ज्ञान का संगम
देव कुमार की दूसरी महत्वपूर्ण कृति है “मैं हूँ झारखण्ड”।
🔹 विशेषता – यह पुस्तक झारखण्ड की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामान्य ज्ञान से जुड़ी जानकारी का संग्रह है। इसे विशेष रूप से JPSC, JSSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए तैयार किया गया।
🔹 जीवंत प्रस्तुति – इसमें केवल तथ्यों का संकलन नहीं है, बल्कि झारखण्ड की लोककथाएँ, प्रेरक प्रसंग और गौरवपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ भी शामिल हैं। यही कारण है कि यह पुस्तक केवल परीक्षा–उपयोगी नहीं, बल्कि राज्य की अस्मिता का दस्तावेज़ भी है।
🔹 लोकप्रियता – मैं हूँ झारखण्ड युवाओं, शिक्षकों और शोधार्थियों के बीच तेजी से लोकप्रिय हुई। कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और इसे राज्य स्तर पर व्यापक स्वीकृति मिली है।
*दोनों पुस्तकों की संयुक्त उपलब्धि*
1. भाषा संरक्षण – “बिरहोर शब्दकोश” ने लुप्तप्राय भाषा को बचाने का काम किया।
2. राज्य की पहचान – “मैं हूँ झारखण्ड” ने झारखण्ड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्मिता को नई पीढ़ी तक पहुँचाया।
3. राष्ट्रीय मान्यता – भारतवाणी परियोजना में शामिल होकर देव कुमार का काम अब भारत सरकार की धरोहर बन चुका है।
4. सामाजिक प्रभाव – आंगनबाड़ी दीवार लेखन जैसे प्रस्ताव देकर उन्होंने साबित किया कि उनका लेखन व्यवहारिक बदलाव लाने वाला है।
5. अंतरराष्ट्रीय समर्थन – उनकी कृतियों की समीक्षा जर्मनी के Kiel University जैसे विदेशी संस्थान के शोधकर्ताओं ने भी की है।
*प्रेरणा और भविष्य*
देव कुमार ने यह दिखाया है कि एक लेखक केवल किताबों का रचनाकार नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक और परिवर्तनकारी शक्ति भी हो सकता है।
आने वाले समय में वे “Focus Series” जैसी Self-Help किताबों पर काम कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को समय प्रबंधन, लक्ष्य निर्धारण और आत्म–प्रेरणा की राह दिखाना है।
इस तरह उनकी यात्रा झारखण्ड से शुरू होकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच तक फैल रही है।
देव कुमार की उपलब्धियाँ यह संदेश देती हैं कि यदि जुनून और दृष्टि साफ हो तो साहित्य समाज की आत्मा को बचा सकता है।
“बिरहोर–हिन्दी–अंग्रेज़ी शब्दकोश” और “मैं हूँ झारखण्ड” केवल पुस्तकें नहीं, बल्कि झारखण्ड की धड़कन और भारत की सांस्कृतिक धरोहर हैं।
यह उपलब्धि झारखण्ड के हर नागरिक के लिए गर्व का विषय है।
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