श्रद्धांजलि विशेष
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शिला कुमारी (शोधार्थी)
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भारत माता के वीर सपूत, झारखण्ड के गौरव वीर नीलांम्बर भोगता और वीर पीतांम्बर भोगता महान स्वतंत्रता सेनानी थे। दोनों सहोदर भाई थे। उनका जन्म-10 जनवरी 1823ई. को पलामू प्रमंडल के गढ़वा जिला भंडरिया स्थित चेमो सनेया गाँव में हुआ था। इनके पिता चेमू सिंह भोगता पराक्रमी जागीरदार थे। इनका संबंध खरवार जनजाति से है। खरवार वीर एंम लडाकू जनजाति है। यह अपने सम्मान के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने तथा सत्य बोलने के गुणों के कारण पहचानी जाती है। इसी पहचान को कायम रखते हुए चेमू सिंह ने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की। अंग्रेजों ने उन्हें शांत रखने के लिए दो जागीर पहले से हीं दे रखी थी। अपने पिता से ही दोनों भाईयों को सीख मिली की अंग्रेज हमारे सगे नहीं हैं। जब भी अवसर मिलेगा वे हमें अपना गुलाम बनाने की कोशिश करेंगे। पिता के मृत्यु के बाद नीलाम्बर ने ही पीताम्बर को पाला। दोनों भाई कुशाग्रबुद्धि के साथ-साथ पराक्रमी वीर योद्धा एवं 'गुरिल्ला युध्द' में पारंगत थे। जिसका उपयोग अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने के लिए किया गया।
1857 ई. विद्रोह के समय पीताम्बर राँची में थे। स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडेय गणपत राय के नेतृत्व में राँची डोरंडा विद्रोह को उन्होंने सामने से देखा। उनसे प्रेरित होकर अपने घर लौटकर बडे़ भाई नीलाम्बर को देश की स्थिति पर विचार-विमर्श किया। पलामू प्रमंडल के खरवार, चेरो, भोगता जो स्थानीय जनजाति थे; इनको संगठित कर खुद को स्वतंत्र धोषित कर दिया। यहीं से अंग्रेजों के विरूद्ध युध्द का बिंगूल फूँक दिया। देश की आजादी के लिए अपने सर पर कफन बाँध घर से निकल पड़े। चेरो जागीरदार देवी बख्श राय ने भी इनका साथ दिया।
नीलाम्बर भोगता और पीताम्बर भोगता के नेतृत्व में निम्नांकित विद्रोह किये गये।
(1) 21अक्टूबर 1857 ई. को चैनपुर में अंग्रेजों के पक्ष में खड़े रघुबर दयाल पर हमला कर दिया। जिसमें वे सफल रहे।
(2) उसके बाद शाहपुर और डाल्टेनगंज से पूर्व स्थित लेस्लीगंज में अंग्रेजों के कैंप पर आक्रमण कर सबकुछ तबाह कर दिया।
इस घटना की खबर मिलते ही 5 नवम्बर 1857 ई. को लेफ्टिनेंट ग्राहम सैनिक टुकडी के साथ लेस्लीगंज पहुँचा।
(3) 7 नवम्बर 1857 ई. को ग्राहम चैनपुर पहुँचा। नीलाम्बर-पीतांम्बर की सेना ने ग्राहम को चैनपुर गढ में घेर लिया। जहाँ से ग्राहम किसी तरह जान बचाकर भाग निकला।
(4) 27 नवम्बर 1857 ई. को नीलाम्बर-पीताम्बर की सेना ने बंगाल कोल कम्पनी के राजहरा कोयला खान के मशीनों को उठा ले गये।
(5) मेजर काटर के नेतृत्व में एक सैनिक टुकडी लेफ्टिनेंट ग्राहम के सहायता के लिए 8 दिसम्बर 1857 को सासाराम से शाहपुर पहुची। देवी बख्श राय को बंदी बना लिया गया। जिससे कई चेरो जागीरदार विद्रोह से अलग हो गए।
जिससे नीलाम्बर-पीताम्बर की सेना कमजोर पड़ने लगी। नीलाम्बर-पीताम्बर अभी भी अंग्रेजों के गिरफ्त से कोशो दूर थे।
नीलाम्बर-पीताम्बर की हिम्मत को देखते हुए जनवरी 1858 ई.मे राँची के कमिश्नर डाल्टन ने मेजर मैक्डोनेल के नेतृत्व में मद्रासी सैनिकों को ग्राहम की सहायता के लिए पलामू भेजा।
13 फरवरी 1858 ई. को नीलाम्बर-पीताम्बर के गढ़ चेमो सनेया पर अंग्रेजों ने कबजा कर लिया। किंतु नीलाम्बर-पीताम्बर सपरिवार भागने में कामयाब रहे।
हार न मानते हुए शाहाबाद में अपनी एक विशाल सेना बनायी। पुनः जनवरी 1859 ई. में पलामू पर नियंत्रण कर लिया।
जनवरी 1859 में कैप्टन नेशन पलामू पहुँचा और ग्राहम से मिल कर विद्रोहियों के खिलाफ़ कारवाई शुरू की। और उन्हें पलामू छोड़ने के लिए मजबूर किया। 8 फरवरी से 23 फरवरी 1859 ई. के बीच केवल दो हफ्तो मे भोगताओं कि शक्ति छिन्न-भिन्न् कर दी गई। लेकिन नीलाम्बर-पीताम्बर पकड़े नहीं जा सके।
नीलाम्बर-पीताम्बर से परेशान हो कर राँची का कमिशनर डाल्टन किसी भी कीमत पर उनको पकड़ना चाहता था। इस लिए उसने पकड़वाने वाले को जागी और इनाम देने की धोषणा की। आखिरकार उसका यह तरीका काम आया। जासूसों ने अपने सम्बंधी के यहाँ भोजन कर रहे नीलाम्बर-पीताम्बर की खबर डाल्टन को दे दी। डाल्टन ने उस स्थान को चारो तरफ़ से घेर लिया। अन्ततः उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। संक्षिप्त मुकदमे के बाद उन्हें 28 मार्च 1859 ई. को लेस्लीगंज में आम के पेड़ पर फांसी दी गई।
नीलाम्बर-पीताम्बर हँसते-हँसते फांसी पर चढ़ गये और अपने देश के लिए शहीद हो गयें। इनकी वीरता को अमर रखने के लिए इनके नाम पर नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय मेदनीपुर पलामू झारखंड में 2009 को स्थापित की गई थी।
इस वर्ष उनके 200वीं जन्मोत्सव पर हम सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आप सभी को झारखंड के वीर सपूत नीलाम्बर-पीताम्बर के ऐतिहासिक जन्म उत्सव दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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