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अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व करें - खोरठा गीतकार विनय तिवारी

भाषा केवल किसी समाज विशेष को ही नहीं बल्कि उसके विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती है।यही नहीं भाषा समाज विशेष की सांस्कृतिक पहचान भी होती है । हम खोरठा भाषी है। हमारी पहचान हमारी खोरठा भाषा औऱ इसकी संस्कृति से है। इसलिए इसका महत्व समझते हुए अपनी मातृभाषा का समुचित आदर औऱ सम्मान करना चाहिए। क्योंकि जिस तरह जन्म देने वाली माँ गरीब होते हुए भी अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करती है , ठीक उसी प्रकार मनुष्य को उसकी मातृभाषा भी उसे महान बनाने में सहायता करती है। मातृभाषा अर्थात वह बोली / भाषा / लिपि एवं संकेत जिसे मानव अपनी माता से ग्रहण करता है। वह भाषा जिसके द्वारा माताएँ अपने बच्चों को जन्म देने के पश्चात से ही उन्हें दुलारनें , पुचकारनें, थपकियों के साथ कुछ गुनगुननें अथवा लोरी गा कर सुलाने से लेकर नींद से जगाने आदि के लिए प्रयोग करती है। तथा मानव जिन्हें अपनी तोतली बोली में अनुसरण करते हुए मृत्यु पर्यन्त अपने क्रिया कलापों ,भाव - भंगिमाओं के साथ सहज स्वभाविक रूप में स्वत व्यवहार करता है।
वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र संध नें 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया। वर्तमान समय में बांग्लादेश जो पाकिस्तान का ही हिस्सा था,वह सिर्फ भाषा के नाम पर ही 21 फरवरी को अलग राष्ट्र बना।उग्र आंदोलन हुआ कितनों की जान गई थी, पूरी दुनिया में भाषा के सवाल पर किसी देश की बनने की यह पहली घटना थी। बांग्लादेश तथा इंग्लैंड के भाषाई आंदोलन को एक ऐतिहासिक क्रांति के रूप में देखा जाना चाहिए।
आज झारखंड में खोरठा सहित नौ झारखंडी भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। परन्तु झारखंड के सबसे अधिक 18 जिलों की भाषा खोरठा को जो स्थान मिलना चाहिए था वह उसे नहीं मिला है। इतिहास गवाह है कि विकास की शुरुआत मातृभाषा के विकास से ही शुरू होती है। हम अपनी मातृभाषा को नजरअंदाज कर के समुचित विकास का सफर तय नहीं कर पाएंगे। 
     
     *विनय तिवारी खोरठा गीतकार* 
 *रोवाम* , *कतरास* , *धनबाद*