झारखंड के सभी क्षेत्रिय व जनजातीय भाषाओं में खोरठा भाषा जीवन रेखा की भूमिका निभाती है यह बात भाषा-खतियान आन्दोलनकारी इमाम सफी ने खोरठा भाषा में एम ए में नामांकन के दौरान कही।
उन्होंने कहा झारखंड में सबसे ज्यादा लगभग दो करोड़ जो कुल आबादी के 60% लोगों की माई कोरवा (मातृभाषा) भाषा खोरठा हैं। इसका विस्तार 24 जिला में सबसे ज्यादा 16 जिला में है। यह भाषा देश के कई राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी बोली जाती है। इसकी मधुरता और उदारता के कारण सभी क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा-भाषी की संपर्क भाषा बन गई है। इस भाषा में धर्म से ज्यादा कर्म पर विश्वास करती है। जादू-टोना,कर्मकांड,आडंबरकी कड़ी नींदा की जाती है। जाति-धर्म,छुआ-छूत,ऊंच-नीच ,गरीब-अमीर की भेद-भाव की आभाव पाई जाति है।
खोरठा भाषा विविधता में एकता और भाईचारा की संदेश देती है। इस भाषा को सभी आदिवासी-मूलवासी बोलते और समझते हैं। इसकी गोलवारी, सिखरिया,परनदियां जैसे कई रुप है। इस भाषा में महिला, बड़े-बुजुर्ग,मेहमान के प्रति सम्मान की भाव दिखाई देती है। इसकी सरलता के कारण छात्रों को स्कूल,कालेज में पढ़ने-लिखने में सुविधा होती है। खोरठा भाषी गलत और अन्याय के विरुद्ध जोरदार विरोध दर्ज करते हैं। चापलूसी, जी हुजूरी के बजाय संघर्ष की रास्ता चुनना पसंद करते हैं। खोरठा भाषी मृदुभाषी, ईमानदार, स्वाभिमानी प्रवृति के होते हैं।
यह भाषा रोजगार के दृष्टि से भी समृद्ध है। गरीब से गरीब बच्चे इस भाषा से सरकारी नौकरी की सपना पुरी करते हैं। प्रतियोगीता परीक्षा में सफल होकर लाखों अभ्यर्थी कर्मचारी व अधिकारी बन रहे हैं। इस भाषा में श्रीनिवास पानूरी, ऐ के झा, इम्तियाज गदर जैसे अनेको महान तपस्वी की विचारों की दर्शन होती है। अपनी उदारता व ममत्व के कारण ही खोरठा भाषा आज देश-प्रदेश के छात्रों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
राज्य सरकार खोरठा समेत सभी क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा के विकास हेतू विशेष ध्यान देना चाहिए। इसकी पढाई केजी से पीजी तक नियमित रूप से हो। प्रदेश स्तरीय लाईब्रेरी खुले और प्रयाप्त संख्या में भाषा शिक्षक व प्रोफेसर की नियुक्ति होनी चाहिए।
Social Plugin