खोरठा कविता
पढ़ रे नूनू ! कुछ त कर
लिख - पइढ़ के बन ओपिसर
तोर ऊपर हामर बड़ी आसा
तोर खातिर बेंड़ाइल हामर रूप-दासा
तोर खातिर बनली हाम मुनीस नउकर
पढ़ रे नूनू ! कुछ त कर,
लिख - पइढ़ के बन ओपिसर ।
संवय बुझी कर काम
कामेंक पइबे सही दाम
गरीब घारें तोर जनम
कोदाइर कोड़ीक संगे धर कलम
अइसन कइर देखाव नुनु
दुनियांय देखबथुन तोर हुनर
पढ़ रे नूनू! कुछ त कर ,
लिख - पइढ़ के बन ओपिसर ।
पढ़ - लिख हुंसियार बन
बिगड़ल समाज कर हथियार बन
गुज गुज आंधार हामर डहर के
अब त तोञ फरीछ कर
पढ़ रे नूनू! कुछ त कर ,
लिख - पइढ़ के बन ओपिसर ।
कवि : संदीप कुमार महतो
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