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खोरठा के संजीवन बुटी- गिरिधारी गोस्वामी ’आकाश खूँटी’

खोरठा के संजीवन बुटी- गिरिधारी गोस्वामी ’आकाश खूँटी’ 
सुकुमार 
                   
गिरिधारी गोस्वामी 'आकाश खूँटी'
गिरिधारी गोस्वामीआकाश खूँटी’ खोरठा जगत के एक ऐसे शख्सीयत  का नाम हैं,जिनके आविर्भाव से खोरठा जगत में जैसे नये प्राण का स्फुरण हो  गया हो। जैसे सुषूप्त वीणा के तार को कोई छेड़ दिया हो, और उसकी स्वर लहरी अनायास बातावरण में गुंजायमान हो उठा हो! जैसे स्थिर जलाशय में कोई कंकड़ गीर पड़ा हो और जल से तरंगें उठने लगी हो। खोरठा जगत में कुछ ऐसा ही करिश्मा करने का श्रेय ’आकाश खूँटीको दिया जाय  तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

  श्री ’आकाश खूँटी’ का वाद विशेष से ग्रसित व्यक्तियों के द्वारा  समय-असमय भले ही सामना एवं आलोचना होता रहा हो तथापि ये मानववादी विचारधारा के ही पोषक रहे हैं। अंधविश्वास और वैचारिक पाखण्ड के मुखर बिरोधी रहे हैं यह इनकी लेखनी और नीजि रूप में भी उतना ही सत्य है।

खोरठा पत्रिकालुआठी’ के प्रकाशन के माध्यम से खोरठा साहित्य में एक प्रकाशवान स्तम्भ के रूप में इन्होने खोरठा साहित्य लेखन को प्रकाशित करते हुए अपने नाम को सार्थक किया। लुआठी के प्रकाशन से एक साथ जहाँ खोरठा के भुले-बिसरे रचनाकारों को स्थापित करने का काम किया वहीं नये रचनाकारों को लिखने केलिये प्रेरित किया। बालीडीह खोरठा कमिटी के सचिव के रूप में इन्होने नये पुराने लगभग पचास खोरठा पुस्तकों का संपादन और प्रकाशन किया। झारखंडी भाषा संस्कृति कर्मियों की साझा मंच झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा के खोरठा भाषा समुह का सफलता पूर्वक नेतृत्व किया। एक भाषा कर्मि के रूप में खोरठा जगत में श्रीनिवास पानुरी, डाॅ0 ए0के0झा और शिवनाथ प्रमाणिक के बाद लोग ’आकाश खूँटी’ का नाम लेने लगे।

भाषा साहित्य संस्कृति के प्रसार केलिए एक साथ पुस्तक प्रकाशन, रचनकारों-कलाकारों केलिए मंच तैयार करने, नाटक मंडली तैयार करने, पुस्तर प्रदर्शनि लगाने एवं सबसे बड़ी चुनौति एक नियमित पत्रिका के संपादन प्रकाशन को पुरा किया।
अक्टूबर 1999 को जब बालीडीह खोरठा कमिटी के माध्यम से ’लुआठी’ पत्रिका का तिमाही संपादन शुरू किया तो खोरठा जगत में इसे एक सनक के रूप  में देखते हुए खोरठा के स्थापित साहित्यकारों द्वारा आलोचना की गई, पर नये  लेखको ने इसे हाथों-हाथ लिया। लगतार दस अंक तिमाही प्रकाशित होते-होते यह पुरे खोरठा जगत की गतिविधियों का आईना बन चुका था। सबसे बड़ी बात थी इसके संपादन-प्रकाशन से जुड़े नाम जो खोरठा लेखन जगत में बिलकुल नये थे जो देखते ही देखते ’लुआठी’ के माध्यम से प्रकाशित होकर स्थापित होते चले गये।

 
इनका जन्म 04 अगस्त 1965  को माराफरी गाँव में हुआ तथा विस्थापन के बाद सपरिवार बालीडीह में आ बसे। इनकी माँ का नाम छुमु देवी एवं पिता देबु लाल गोस्वामी है जो स्वयं रसधारी के एक अच्छे कलाकार, उत्कृष्ठ सारंगी वादक एवं मुर्तिकार हैं। दर्शन शास्त्र से स्नातकोत्तर एवं को खुला विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में बी0जे0एम0सी0 की डीग्री प्राप्त श्री ’आकाश खूँटी’ की साहित्यिक यात्रा छात्र जीवन से ही प्रारंभ हुईसन् 1983 में ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आये तथा ’अमृत बर्षा (हिन्दी दैनिक) के कार्यालय संवाददाता के रूप में जुड़े। समाचार लेखन के साथ-साथ ये रचनात्मक लेखन में अग्रसर हुए। 

यह समय हिन्दी लघुकथा का स्वर्ण युग कहा जाता है। बोकारो के कई साहित्यकार राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने लगे थे। इनकी प्रथम हिन्दी लघुकथा  ’अफसर का कुत्ता’ 29 जनवरी 1984 को ’अमृतबर्षा’ में प्रकाशित हुइ। 1985 में लखनऊ से प्रकाशित ’दहेज दानव’ हिन्दी पाक्षिक द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में इन्हें पुरस्कृत किया गया।

07 जुलाई 1984 को बोकारो खोरठा कमिटी के गठन के साथ ही ये इसके संस्थापक सदस्य बने। इसके साथ ही ये खोरठा के समकालीन भाषा कर्मी डाॅ0 ए0के0 झा, शिवनाथ प्रमाणिक, बंशी लाल ’बंशी’, सुकुमार, डाॅ0 बी0एन0ओहदार, डाॅ0 बिनोद कुमार आदी के संपर्क में आये। 1985 में प्रकाशित शिवनाथ प्रमाणिक संपादित प्रथम खोरठा कविता संकलन में इनकी पहली खोरठा कविता प्रकाशित हुई ’रूसल पुटुस’ इसी कविता के आधार पर संकलन का नाम भी ’रूसल पुटुस’ रखा गया।
ये मुलतः पत्रकार थे इसलिये इनकी प्रतीभा एक संपादक और संगठन कत्र्ता के रूप में खुल कर सामने आई। 1995 में ’खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद्’ के पंजियन के बाद प्रथम महा अधिवेशन का भार इन्होने लिय और अपने संयोजन में बालीडीह खोरठा कमिटी गठन करते हुए इस महाअधिवेशन को बालीडीह में सफल आयोजन किया जिसमें पुरे खोरठा क्षेत्र के सभी प्रमुख खोरठा साहित्यकार, कलाकार, शिक्षकों एवं रंगकर्मियों ने भाग लिया। इसी अधिवेशन में ’श्रीनिवास पानुरी स्मृति साहित्य सम्मान’ एवं ’खोरठा रत्न सम्मानोपाधि का भी वितरण किया गयासुकुमार जी की ’पइनसोखा’, डाॅ0 ए0के0झा जी की ’कविता पुरान’ के साथ पहली बार खोरठा भासा में स्मारिका का विमोचन किया गया जिसका संपादन ’आकाश खूँटी’ ने किया था।

बालीडीह खोरठा कमिटी के सचिव के रूप में इन्होने खोरठा रचनाकारों का नेतृत्व करते हुए खोरठा भाषा-साहित्य को समृद्ध करने लगे। अक्टूबर 1999 में बालीडीह खोरठा कमिटी की ओर से ’लुआठी’ नाम से 16 पृष्ठों की पुस्तिकाकार त्रैमासिक खोरठा पत्रिका का संपादन आरंभ किया। आरंभ में ’लुआठी’ के नाम पर इनका खुब उपहास उड़ाया गया पर देखते ही देखते अपने बहुमुखी गतिविधियों से खोरठा जगत के केन्द्र में आ गये। बालीडीह खोरठा कमिटी के बैनर तले एक साथ पत्रिका प्रकाशन-संपादन,  पुस्तक प्रकाशन, कवि सम्मेलन का आयोजन, खोरठा नाटकों का मंचन, पुस्तक प्रदशनी के लेकर छात्रों का मार्गदर्शन तक, हर तरह के इन्होने खोरठा भाषा के प्रचार-प्रसार में अग्रणि भूमिका निभाई।

जिस वक्त ’लुआठी’का प्रकाशन आरंभ हुआ खोरठा भाषा साहित्य में जड़ता आ चुकी थीं । एक विचार धारा से प्रभावित रचनाएँ प्रकाशित होती जा रही थी,  बाद बिशेष से प्रभावित रचनाकारों को प्रश्रय दिया जा रहा था और दुसरे अन्य रचनाकारों को हतोत्साहित किया जा रहा था। सिलेबस में भी कुछ बिशेष विचारधारा के लोग हाबी थे। खुल कर कहा जाय तो डाॅ0 ए0के0झा और उनकी मानवादी कहे जाने वाली विचारधारा के इर्द-गीर्द खोरठा लेखन हो रहे थे। उनके मतांतर  लिखने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। ऐसे में उनसे इत्तर विचार रखने वाले रचनाकार खोरठा के मुइख-धारा से बिलग होते चले गये थे। सिधे तौर पर  खोरठा में गुटबाजी हाबी हो चुकी थी और उनका बिरोध करना खोरठा साहित्य में गौण होना था। लेखन में भी ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर और वास्तविकता   को नजरअंदाज कर मनमाना दस्तावेजीकरण किये जा रहे थे।

ऐसे में ’बोंड़ाइल खातिर आलाॅ आर समाजेक आपतार के पोड़वे ले, उठाय     धरा हदकल लुआठी’ पंच लाइन लेकर ’लुआठी’ का संपादन शुरू किया। इनके तेवर को देखते हुए लगातार तीन अंक ’लुआठी’ के प्रकाशन के बाद ही अप्रैल 2000 में हुए विशाल खोरठा महोत्सव में इन्हें बोकारो खोरठा कमिटी द्वारा खोरठा साहित्य सेवा केलिए ’खोरठा रत्न’ की सम्मानोपाधि से सम्मानित किया गया।

 ’लुआठी’ के माध्यम से इन्होंने एक साथ इन्होने खोरठा साहित्य में पुराने बिसरे साहित्यकारों की खोज कर  चालीस पृष्ठों की ’श्रीनिवास पानुरी स्मृति विशेषांक’ प्रकाशित की, तितकी राय, भुवनेश्वर दत्त शर्मा ’ब्याकुल’,नरेश नीलकमल, विश्वनाथ प्रसाद नागर, विश्वनाथ दसौंधि ’राज’ जैसों के काम को ’लुआठी’के माध्यम से उजागर किया वहीं दर्जनों नये नामों को खोरठा साहित्य में स्थापित किया जिसमें ’लुआठी’ से जुडे़ साहित्यकार कथाकार पंचम महतो, जनार्दन गोस्वामी ’ब्यथित’, मनपुरन गोस्वामी, हाजी मो0 सिराज उद्दीन अंसारी ’सिराज’, डाॅ0 महेन्द्र नाथ गोस्वामी ’सुधाकर’,मणिलाल ’मणि’, श्याम सुन्दर केवट ’रवि’’ के नाम प्रमुख हैं। 

1977 में खोरठा मासिक ’तितकी’ का संपादन करने वाले प्रतीभावान साहित्यकार विश्वनाथ दसौधिं ’राज’ जी जो खोरठा लेखन से अपने आप को अलग कर लिया था और जीते-जी इतिहास में समा गये थे, उन्हें पुनर्लेखन की ओर प्रेरित किया ओर उनके चार नये पुस्तकों का संपादन प्रकाशन किया।

लुआठी’ के प्रकाशन के साथ ही बालीडीह खोरठा कमिटी द्वारा पाँच बर्षों में इतनी खोरठा पुस्तकें प्रकाशित कर दी गई जितना कि पिछले पचास बर्षो में भी नहीं हुई थी, और इसका श्रेय जाता है ’आकाश खूँटी’ को। जैसे ’आकाश खूँटी’ के रूप में मृत प्राय खोरठा साहित्य को जैसे संजिवनी बुटी मिल गई हो। इन्हीं बिशेषताओं को देख कर खोरठा के काकाहाथरसी कहे जाने वाले हास्य व्यंग्य कवि  राम शरण विश्वकर्मा जी ने  अपनी पुस्तक में इन्हें ’ आकाश खूँटी माने खोरठाक संजिवन बुटी’ कहा। भेंडरा में आयोजित अखिल भारतीय खोरठा परिषद् की ओर से इन्हें ’सपुत सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

इनके प्रमुख रचनाओं में ’चेठा’ लधुकथा संग्रह, ’आगु जनमे’ (एकांकी) एवं कविताओं के अलावे खोरठा साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर आलोचनात्मक लेख  शामिल हैं, पर इनकी सबसे बड़ी रचना ’लुआठी’ ही कही जा सकती है।

2003 में  ये ’प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित झारखंडी भाषा -संस्कृति कर्मियो के संपर्क में आये और झारखंडी भाषा कर्मियों के साझा मंच ’झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा’ के संस्थापक सदस्य बनते हुए खोरठा भाषा समुह का नेतृत्व और संपादन किया। अखड़ा के हर भाषा आंदोलन में खोरठा  भाषा कर्मियों का नेतृत्व किया।

झारखंडी भाषा आंदोलन को साझा मंच देने वाली संस्था झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा के खोरठा समुह का नेतृत्व करते हुए बोकारो क्षेत्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन 2008 एवं 2012 में करवाया। अखड़ा महासम्मेलन में आदर्श झारखंडी भाषा कर्मि पद्मश्री डाॅ0 रामदयाल मुण्डा के हाथों इन्हे ’अखड़ा सम्मान-2010‘ से सम्मानित किया गया।
खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद् की ओर से २५ दिसम्बर २०२० को, श्रीनिवास पानुरी जन्मशति के मौके पर राँची प्रेस क्लब में आयोजित भव्य समारोह में इन्हें 'विश्वनाथ दसौंधी 'राज'स्मृति पत्रकारिता सम्मान' से सम्मानित किया गया। 

लगातार 19 अंकों के बाद अश्विनी कुमार ’पंकज’ के प्रोत्साहन से इन्होंने ’लुआठी’ का मासिक पत्रिका के रूप मेें भारत में समाचार पत्रों के पंजियक (आर0एन0आई0) से पजिकृत करवाया। सयोग से ’लुआठी’ नाम ही मिल गया जिससे ’लुआठी’ के नाम से हुये कामों का आंकलन करने में सुबिधा हुई।

लुआठीएक मात्र पत्रिका होने के कारण इनका दायित्व भी बढ़ गया, एक साथ छात्रोपयोगि सामग्री, कहानी, कविता, लेख, निबंध, एकांकी, साक्षात्कार और विभिन्न बिशेषांकों द्वारा साहित्य को संमृृद्ध किया।

सर्वाधिक भाषाओं में बाल पत्रिका के प्रकाशन का कृतिमान स्थापित करने वाला जगतसिंहपूर (उडीसा) निवासी दिवंगत विजय कुमार महापात्रा ने खोरठा भाषा मेे प्रकाशित होने वाली बाल पत्रिका ’दुलरोउति बहिन’ का मुइख संपादक  का भार भी इन्हें दिया इसके लिये ’बाबाजी संग्रहालय’ द्वारा इन्हें ’बाबाजी संग्रहालय संम्मान-2008’ से सम्मानित भी किया गया।
लुआठी’ के सफल संपादन के बाद ये खोरठा साहित्य में स्थापित होते चले गये। अब इनकी प्रतीभा के कायल थे इनके आलोचक भी। बालीडीह खोरठा कमिटी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के अलावे कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के संपादन के जुड़े जिसमें युनिसेफ और झारखंड जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के संयोजन में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के बाल साहित्य एवं खोरठा लोक साहित्य उल्लेखनीय है।

झारखंडी लोकसंगीत के ये पारखी श्रोता हैं पर वाद्य के रूप में ये माउथआॅर्गन   बचपन से बजाते रहे हैं। कम्प्यूटर में अच्छी पकड़ है, प्रकाशन के अधिकतर काम स्वयं करते है। सोसल मिडिया में भी ये काफी लोकप्रिय हैं। ताज्जुब होता है एक आदमी अपने दैनिक कार्य और पारिवारीक दायित्वों को निभाते हुए सामाजिक कार्याें केलिए कैसे इतना समय निकाल लेता है। यह इनके  भाषा के प्रति समर्पण और लगन के कारण ही संभव हो पाया है। ’आकाश खूँटी’ से खोरठा जगत को काफी अपेक्षाएँ हैं।

सुकुमार 


गिरधारी गोस्वामी 'आकाश खूँटी'