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यू.जी.सी. मदन मोहन मालवीय शिक्षा प्रशिक्षण महाविद्यालय में "गुरु दक्षता" 20वीं फैकल्टी इंडक्शन कार्यक्रम जारी


 27/01/2024(शनिवार) को यू.जी.सी. द्वारा प्रायोजित 20वीं फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम "गुरुदक्षता" का मदन मोहन मालवीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, रांची में हिंदी विभाग, रांची विश्वविद्यालय, की सहायक प्राध्यापिका सह कार्यक्रम समन्यवक डॉ. सुनीता कुमारी के देखरेख में ऑनलाइन प्रशिक्षण सफलतापूर्वक आज भी जारी रहा । 
आज प्रथम सत्र में रांची विश्वविद्यालय जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. आनंद कुमार ठाकुर ने "ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस एंड सप्लीमेंट्री सॉफ्टवेयर" विषय पर अपना व्याख्यान दिया । उन्होंने बतलाया कि कैसे सॉफ्टवेयर की मदद से ऑडियो-वीडियो बनाया जा सकता है और उसमें कैसे अपनी आवाज देकर शिक्षा देने की प्रक्रिया को रोचक बनाया जा सकता है । उन्होंने स्क्रीनकास्टिफाई, प्रेजेंटेशन ट्यूब और टिप केम के बारे विस्तार से बतलाया गया । उसके प्रयोग के लाभ भी बतलाया गया ।
द्वितीय सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. सत्येंद्र कुमार द्वारा "हायर एजुकेशन एंड इट्स इकोसिस्टम" विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया गया । उच्च शिक्षा में प्राचीनता को बतलाया गया । नालंदा विश्वविद्यालय के बारे बतलाया गया । उन्होंने विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में हर सुविधा होने की बात बतलाई गई ताकि हर छात्र को समय के अनुसार शिक्षा दी जा सके ।
 तृतीय सत्र में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के खोरठा भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बिनोद कुमार द्वारा "व्यक्तिगत भावात्मक विकास और परामर्श" विषय पर व्याख्यान दिया गया । उन्होंने अपने व्याख्यान में बतलाया कि व्यक्ति में भाव का होना स्वाभाविक है, जिसमें स्वयं का भाव होता है । भावनाएं ही व्यक्तिगत विकास करती हैं ।संस्कृति से जुड़ाव भावनाओं से ही आती है । उन्होंने संस्कृति और मातृभाषा को भावात्मक विकास से जोड़कर उदाहरण स्वरूप बतलाया कि झारखंड के डॉ. रामदयाल मुंडा ने कैसे भावात्मक जुड़ाव के कारण झारखंड की "पाइका" नृत्य को कैसे विश्व पटल पर रखा खासकर अमरीका जैसे विकसित देश में । उन्होंने "जोहार" शब्द को सामूहिक अभिवादन, नमस्कार, प्रणाम बतलाया जिसमें समय का पाबंदी नहीं और हर समय प्रयोग किया जा सकता है । डॉ. मधुकर द्वारा जोहार का अर्थ "प्रकृति की जय" भी बतलाई गई । उन्होंने झारखंडी भाषाओं खासकर क्षेत्रीय भाषाओं की भावात्मक विकास के बारे भी बतलाया । उन्होंने मां का उदाहरण देते हुए बतलाया गया कि कैसे बच्चे द्वारा "मम" से शुरू होकर ममा, मां और मइया तक पहुंचती है । उन्होंने "हदीआना" और वर्षा होने की प्रारंभिक अवस्था से लेकर मूसलाधार तक पहुंचने की क्रिया को खोरठा में टप टपा हइ, टिप टीपा हइ, फिसिर फिसीर आव हइ, अगरी चूआ हइ, एक अछरा मारलइ और हाल भइर मारलइ । इसके बाद कृषि का कार्य शुरू होने की बात बतलाई गई । उन्होंने लोक-साहित्य, लोक-परंपरा, लोक गीत, लोक कथा में भावात्मक विकास के बारे भी बतलाया । बच्चों के मातृभाषा(मां की भाषा) में ही शिक्षा देने के फायदे भी बतलाए जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2023 की एक पहल है । बच्चे खोरठा में पहले चरका समझते हैं तब सफेद, उजाला और व्हाइट समझते हैं । उन्होंने झारखंडी संस्कृति में सहिया, करम और फूल डाइर संबंध में भावात्मक जुड़ाव को बतलाया । उन्होंने हृदय स्पर्शी शब्दों का प्रयोग कर साहित्य का निर्माण की सलाह दी ताकि साहित्य को भावात्मक बनाया जा सके । मौलिक एवं प्रचलित शब्दों के प्रयोग एवं भंडारण को भी महत्वपूर्ण बतलाया । हर भाषा संस्कृति के मौलिक संपदा एवं विशेषता होती है और उसके प्रयोग से आत्मीयता आती है । उन्होंने दृश्य नाटकों में मानवीय पक्ष और भावात्मक पक्ष के मिलने की बात बतलाई । पाइका, छऊ, चाचर इत्यादि नृत्य नाटिकाओं के बारे भी बतलाया जिससे भावात्मक विकास की संभावना होती है ।
चौथे सत्र में आज डॉ. हीरामणि गोस्वामी, सुश्री भीतिका राय और श्रीमती फरजाना नईम द्वारा अपने-अपने विषय पर "सूक्ष्म अध्यापन" प्रस्तुत किया गया जिसका संचालन डॉ. रंजीत कुमार द्वारा किया गया ।
  प्रथम सत्र में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. किरण कुल्लू, द्वितीय सत्र में डॉ. जुबिन चंद्र राय ने धन्यवाद दिया और तृतीय सत्र के व्याख्यानकर्ता डॉ. बिनोद कुमार का आभार डॉ. अवध बिहारी महतो द्वारा प्रकट किया गया । अभरस्वरूप कहा गया कि आपने जो व्यक्ति को भावात्मक विकास को हमारे जीवन से जोड़कर बतलाते हुए आत्मानुभूति करवाया उसके लिए हम सारे प्रतिभागी जो लगभग पूरे भारत से ऑनलाइन मोड से जुड़े हैं आपके आभारी हैं । 
कार्यक्रम के अंत में कोर्स कॉर्डिनेटर और हिंदी की सहायक प्राध्यापिका डॉ. सुनीता कुमारी द्वारा मां की महता के बारे जिक्र करते हुए कहा गया कि मां का स्थान कोई नहीं ले सकता । वह प्रथम गुरु तो है ही संरक्षिका भी है । सभी को मां का आर्शीवाद हमेशा मिलता रहता है । यह कार्यक्रम इसी प्रकार 31-जनवरी,2024 तक सफलतापूर्वक चलेगी के विश्वास के साथ आज के कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई । आज के ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ. मृदुला खेस, डॉ. शुभ्रा सारस्वत, डॉ. सीमा सिंह, प्रो. श्रीमती कुमारी शशि, डॉ. अजय रविदास, डॉ. श्याम बाबू, डॉ. मोहन प्रसाद वर्मा, श्रीमती प्रतिमा सिंहा, डॉ. किरण कुल्लू, डॉ. मृदुल्ला खेस, डॉ. अंजली कुसुम ओम, डॉ. अंजन डेका, डॉ. अर्चना कुंतल, डॉ. अशोक सिंह, श्रीमती भीतिका राय, डॉ. सावन कुमार, डॉ. सुजाता गुप्ता, श्रीमती तम्मन्ना परवीन, डॉ. वी. वैलो, डॉ. अजय कुमार सिंह, डॉ. अनिरुद्ध चंद्र बसु, डॉ. सीमा सिन्हा, डॉ. ममता साई, डॉ. विकास रंजन, डॉ. अजय कुमार सिंह, डॉ. ऋतु घांसी, डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. निधि गांधी बेहल, एवं श्रीमती सुचिंता कुमारी, श्रीमती शशिकांता भगत, श्रीमती बबीता कुमारी, श्रीमती सराबनी हेमरोम के साथ सारे प्रतिभागी उपस्थित हुए ।
सधन्यवाद 

विश्वासभाजन 
डॉ. सुनीता कुमारी
सहायक प्राध्यापिका, हिंदी विभाग, रांची विश्वविद्यालय सह
कोर्स कोऑर्डिनेटर,
"गुरुदक्षता" 20वीं संकाय दीक्षा कार्यक्रम,
मदनमोहन मालवीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, रांची, झारखंड ।