जीवन परिचय :-
खोरठा के तीसरा स्तंभ कहे जाने वाले खोरठा के वरिष्ठ साहित्यकार का जन्म बोकारो जिला के अंतर्गत बैधमारा गांव में सन् 13 जनवरी 1950 को एक साधारण परिवार में हुआ था । इनके माता का नाम तिनकी देवी तथा पिता का नाम मुरलीधर प्रमाणिक है । इनका उपनाम नाम माणिक है , जो इसी नाम से विख्यात हैं । माणिक जी बचपन से ही नटखट, चंचल और लिखाई - पढ़ाई में काफी रूचिकर थे । करीबन चार से पांच की कक्षाओं में साग, मडुवा, गुंधली खा कर मैट्रिक की पढ़ाई चंद्रपुरा हाई स्कुल से लिखकर उत्तीर्ण हूए । इनके घर की आर्थिक स्थिति कमी होने के कारण अच्छी जगह से पढ़ाई नही कर पाये किन्तु पढाई में जुनुन रहने के कारण इंटरमीडिएट की पढ़ाई को पुरी की । सन् 1985 ईस्वी में इनकी एक प्राइवेट कम्पनी में नियुक्त हुए। इसके बाद ही घर परिवार की जिम्मेवारी बड़ती गई , इन तमाम समस्याओं से उभर कर पारिवारिक बोझ को अपने कंधा में लेकर सफल रहे अर्थात् माणिक वैवाहिक जीवन में सम्मेलित हो गये। इनके दो पुत्र और एक पुत्री हुए। समयानुसार माणिक जी पारिवारिक उलझन से समोहित होने के बावजूद भी साहित्यिक लेखन को लगातार प्रवाहित करते ही रहे और खोरठा साहित्य जगत में साहित्य की हर विधा में एक से बढ़कर एक रचनाएं उभरते हूए देखने को मिला । साथ ही गांव गांव जाकर लोगों को खोरठा भाषा साहित्य के विकास से अवगत कराना और शिक्षा क्षेत्र को जागरूक कराते थे । यही नहीं कई जगहों में खोरठा भाषा से जुड़ी संस्थाओं का गठन किये तथा कुछ ऐसी संस्था जो कई वर्षो से शिथिल पड़ी हुई थी उसे भी पुनर्गठन भी करवाये । माणिक जी एक उच्चस्तरीय साहित्यकारों मे से एक हैं इन्होने खोरठा भाषा साहित्य की संरक्षण व संवर्धन करने हेतू लोगों को खोरठा लेखन के प्रति जागरूक भी करवाते रहे अंततः विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता 27 फरवरी 2024 को खोरठा जगत को छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गये ।
भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
खोरठा लेखन की राज :-
खोरठा के महान साहित्यकार डॉ. ए. के झा के संपर्क में आने के बाद सन् 1984 में खोरठा लेखन कार्य को श्रीगणेश किये और इसके बाद ही माणिक जी की अपनी मांय माटी मातृभाषा और संस्कृति से संबंधित इनकी कलम की धारा लगातार प्रवाहित होने लगी । इसके अलावे इनकी खोरठा के अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे । प्रमाणिक जी वीर रस के सबसे बड़े कवियों में से एक हैं । इन्होने सदा सलिलता से अपने काव्यों की रचना करने लगे ।
संस्थानों में योगदान :-
कहते है न की व्यक्ति को जिस पर प्रेम हो जाय तो व उसे हासिल करके ही रहती है । ठीक उसी प्रकार प्रमाणिक जी को अपनी भाषा और माटी की गंध को अंदर आत्मा से समा लिये । और साहित्य की विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हूए देखने को मिला है ।
माणिक जी खोरठा भाषा के विकास के लिए कई संस्थानों से जुड़े रहे । कई संस्थाओं में कार्यभार और कार्यकारी सदस्य के रूप में चिन्हित मिले । जो निम्न हैं -
सृजन संस्थान , जनवादी लेखन संग , मानववादी साहित्यकार संग , छोटानागपुर खोरठा विकास परिषद् , विस्थापित कल्याण समिति, बोकारो खोरठा कमिटी , खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद के अलावे आकाशवाणि एवं दूरदर्शन से भी जुड़े रहे । भाषा आंदोलन में सक्रिय देखने को मिला ।
भाषा शैली :-
प्रमाणिक जी खोरठा के वीर रस के कवियों में से एक हैं । इनकी भाषा सरल और ठेठ खोरठा में देखने को मिला है । जिसे खोरठा भाषा भाषी आसानी से पढ़ने और समझने में रोचकता आती है । काव्यों में व्याकरणिक परिपेक्ष्य से जुड़ी तथा मानकीकृत के सापेक्ष पर इनकी हर विधा में देखने को मिला । कवि जी सरल और सहज भाषा शब्दों का प्रयोग किये हैं । जिसे पढ़ने वालों में रोचकता बनी रहेगी।
वीर रस की कुछ पंक्ति निम्न है :-
खिजल हडरें लहर-लहर गीदर चले पारे
डहर खोइज के चले गले लहर चले पारे ।
चल डहरे चल रे , डहर बनाइ चल रे ...
जीनगीक डहरें कांटा, कांटा उठाय चल रे ।।
चल डहरे चल रे , डहर बनाय चल रे ,
चल डहरे चल रे , डहर बनाय चल रे ।।
माणिक जी प्रमुख कृति :-
'रूसल पुटुस' का संकलन और संपादन 1985
(खोरठा कविता संकलन)
दामुदरेक कोराञ 1987
तातल आर हेमाल कविता संकलन 1998
खोरठा लोक साहित्य 2004
मइछगंधा खोरठा महाकाव्य 2012
खोरठा - काव्य का स्वरूप 2019
माटीक रंग 2019 में प्रकाशित हुई है। हालाँकि उस वक्त पुस्तक प्रकाशित करने की उतनी सुविधा नहीं थी जितनी की आज है । इसके अलावे विभिन्न विधाओं में पाण्डुलिपि भरी पड़ है।
हम अपने शोध के दरमियान में पाये की कवि जी का कई पांडुलिपि भी देखने को मिला जो अभी प्रकाशक के द्वार पर है, विश्वास होता है की आने वाले दो चार महिनों में प्रकाशित होगी और आप लोग के हांथों में होगी ।
सम्मान :-
प्रमाणिक जी का इतने बडे कार्य क्षेत्र होने के बावजूद इनको सम्मान न दिया जाएगा ये तो हो ही नहीं सकता है । क्योंकि इनकी जो खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति पर सेवा और साहित्य को सजग करने में जो योगदान है वो अमुल्य है । कहीं न कहीं खोरठा साहित्य इनका ऋणी है और आगे भी रहेगी । इनका रूची और सेवा देख सबसे पहले हिन्दी साहित्य संगम बोकारो और काव्यलोक जमशेदपुर से 'काव्य भूषण' सम्मान, परिवर्तन संस्था चतरा के द्वारा 'परिवर्तन विशेष' पुरस्कार अखिल झारखण्ड खोरठा विकास परिषद , भेंड़रा द्वारा सपुत सम्मान, झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2007 में 'सांस्कृतिक सम्मान' , 'सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार' सम्मान 2008 में खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति परिषद, रामगढ़ से 'श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान' इसके अलावे अन्य कई क्षेत्र से प्रसस्ति पत्र से सम्मानित हूए ।
'शिवनाथ प्रमाणिक: जीवन एवं साहित्य' पर स्नातकोत्तर विभाग खोरठा राँची विश्वविद्यालय, राँची से मानिक कुमार कर रहे हैं शोध।
इनकी अंतिम संस्कार बोकारो स्थित चास गरगा पुल में किया गया । विभिन्न जगहों में शोक संदेश में शामिल हुए खोरठा साहित्यकार, कलाकार ,शोधार्थी व पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने की मुख्य तौर से शांति भारत, प्रहलाद चंद्र दास, गिरिधारी गोस्वामी' आकाश खूंटी', श्याम सुंदर केवट 'रवि', डॉ बिनोद कुमार, डॉ बीएन ओहदार, डा अजय कुमार, प्रो दिनेश दिनमणि, प्रदीप कुमार दीपक, सुकुमार, सुजाता कुमारी, संदीप कुमार महतो, डॉ नागेश्वर महतो, मानिक कुमार महतो, सहदेव कुमार, पंकज कुमार जायसवाल, डॉ जीतलाल महतो, उमेश कुमारप्रसाद, ललन तिवारी, कुमार सत्येंद्र, निधन पर गोमिया विधायक डॉ लम्बोदर महतो , राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सुनील कुमार प्रजापति, डॉ रितु घांसी, खोरठा गीतकार विनय तिवारी, अशोक पारस, कामेश गोस्वामी, गुलांचो कुमारी, राजेश कुमार, रामकिशुन सोनार, प्रो अरविंद, डॉ कृष्णा गोप, अनाम ओहदार, विक्की कुमार आदि ने भी शोक प्रकट किया है।
शोधार्थी : संदीप कुमार महतो
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