खोरठा झारखंडें सबले बेसी छेतरें पसरल आर सबले बेसी संपरक भासाक रूपें जानल जा हे।
खोरठा विदवान डाॅ0 ए0के0झा जीक अनुसार खोरठाक संबंध सिंधुघाटी सइभता सें हइ, एकर लेल कइगो बेबहारिक परतुलो देल हथ। जेरंग हिंया अचक्के आइल बाइढ़ के एखनु हड़प्पा कहल जा हइ। खुब बेसी पुरान टुलल खांची सूप के जोधड़ो कहल जा हइ। जे अरथें एकर परजोग हवे हे तइसने भाव हड़प्पा आर मोहेन जोदड़ो सइभता के फुरछा हे। एकर छाड़ा झारखंड छेतरें परचलित सगड़ गाड़ी ंिसंधु घाटिक सइभताक हुइलें पावल गेल हइ।
दोसर परतुल ऊ खोरठाक लसतंगा पुरना खरोष्ठी लिपि सें जोड़-हथ जकर भेसटाइल रूप खोरठा भेल।
जानेक जुकुर बात हे जे झारखंडेक सदान सभेक मुइख रूपें चाइर नामें भासाक पहचान करल जा हइ, खोरठा, नागपुरी, कुरमाली आर पंचपरगनियाँ। भिनु-भिनु छेतरें सच पुछल जाय तो एके भासवा कटि फरक कइर बोलल जा हइ, एकर परमान हइ जे ई चाइरो भसवइनेक लोक बेस तरि आपस में बोइल बतियाइ ले हथ, बिना आन हिंदी अंग्रेजी रकम उपरी भासाक उसास लेइ। 1978 में भेल झारखंड बुइधजीवी मंचेक अधिवेसने एकर उपर बेस तरि बिचारो करल गेल हलइ जे काहे नाय ई चाइरो भसवइनेक एगो संगिया नाम दइ झारखंडेक संपर्क भासाक रूपें थापित करल जाय,(....ए0के0झा ने पूछा कि क्या बंगला की तरह ही नागपुरी, खोरठा और कुरमाली को मिलाकर हम भी एक सामान्य भाषा का विकास नहीं कर सकते? बोलियों का भेद तो रहेगा, लेकिन लिखित भाषा कि अपनी भाषा साहित्य के प्रकाशन के लिए हम लोगों को अपनी ओर से व्यवस्था करनी चाहिए।...- शालपत्र अंक -5 पृष्ठ 35)। आर एकर में से समयेक विदवान डाॅ0 वी0पी0 केशरी (नागपुरी), ए0के0झा (खोरठा) आर आन कइएक भासा विद् सहमतो भेल हला मेनेक तखनो कुरमाली विदवान सब एक मत नाय भेला। एहे समय सदानी भसवइनेक आंतरिक एकता लइ अध्ययन करेक जिम्मा डाॅ0 ए0के0 झा जी लेला आर ’खोरठा सहित सदानी बेयाकरन’ नामेक किताब लिख देला, जे आइझो ई आंतरिक एकता के सामने आने खातिर एगो बेस दस्तावेज रूपें देखल जा हइ।
तखनो कुरमाली कुरमीक भासा करमी एकर संकुचित करेक चेस्टा करला ई राजनेतिक लाभेक आसें जे कुरमीक आदिवासी बनवेक आंदोलनेक कुरमाली सहायक हवत।
एतने नाय कुछ कुपमंडुक भासा करमी तो खोरठाको कुरमालिए कहेक सुरू कइर देला आर खोरठाक अस्तित्व उपरे चोट करे लागला।(देखा -’शालपत्र’ अंक -2)।शालपत्रेक पहिल अंकें जे लखीकांत महतो जीक कविताक पहिल पांता हे, ’खोरठा हामराक मातरी भासा’ ओहे कवि ’शालपत्र’ के दोसरे अंकें कहे हे,’ खोरठा कोई भासा नहीं, इसे मैं कुरमाली कहना पसंद करूंगा’।
ई उलटबयानी सोझासोझी राजनइतिक दबाबेक चलतें भेल हलइ।
एहे पतरिकाक चोउथा अंकें प्रो.नरेश नीलकमल जी तो हियाँ तक कइह देला जे खोरठा आर कुरमाली एके भासाक दू नाम हे।
खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनियाँ बा कुरमाली एके गो जाइतें बइजक-हथ?
खोरठा बोलवइया कुरमी छाड़ा तेली, कुम्हार,कोयरी, लोहार, कमार,रजवार, घटवार, गोसांइ, मुची,डोम, अंसारी, बाभन, राजपुत, भुमिहार (जकर इहाँ मगहइया/मघया कहल जा हे) आर कते-कते जाइत हथ जे खोरठा मातरी भासाक रूपें बोलथ।
बंगाल से सटल सिखरिया छेतरेक कुछ कुरमी विदवान सब आपन भासाके कुरमाली कइह के परिचय दिये लागला आर कुरमालीक नामे साहित रचनाओ करेक सुरू करला। खास कइर ई राजनइतिक चेतनाक ढांचाँइ जे कुरमी जाइतेक भिनु भासाउ हवेक चाही।
खोरठा के कहीं डोमाली आर मुचियाली कहल गेल हइ, खोरठा भासी आदिवासीक मइधें करमालीयो आवे हे, फेर ऊ सब खोरठा के करमाली काहे नाय कहथ कमार सब कमारी? लोहरा के भिनु लोहारी भासा नखइ।
इटा बेस तरि बुझेक दरकार हे जे आदिवासीक दरजा पावे खातिर सभेक भिनु-भिनु भासा रहना जरूरी नखे, आर दोसर बाट सभे आदिवासी के एगो खासा भास में बंइध रहना भी जरूरी नखे, आगुवो नाय हलइ आर एखन तो आरो नाय।
जाइत आर भासा दु चीज हे, बोकारो जिलाक उराँव सब खोरठा आर बंगला मातरी भासाक रूपें परजोग करथ, कुरूख के तो सब कोइ नामो नाय जानथ। ओइसने खोरठा छेतरेक मुंडा जनजातिक लोक मुंडारी नाय जानथ। खोरठे ओखनिक मातरीभासा बइन गेल हइ। तो फेर कइसें उसभेक आदिवासीक दरजा आर लाभ पावा हइ?
ई लेताइरें एक बोड़ सवाल हे जे झारखंडें जेतना जाइत के आदिवासीक दरजा देल गेल हइ की सभेक आपन जाइत भासा हइन ? एखन झारखंडें आरो कइएक जाइत आदिवासीक दरजा खातिर आंदोलन कइर रहल हथ ऊ सब तो भिनु भासा उपर जोर नाय देथ? जइसें घटवार बेसी कइर खोरठा भासी हथ, उसब तो कोन्हों ’घटवारी’ भासाक नाम नाय लेथ! एकर आगु तेली सब तेलीयारी, कुम्हार सब कुम्हारी, नाय कहथ!
रहल बात खोरठा के, तो खोरठा बोलवइया सब जाइतेक लोक हथ, आर एहटो दिगर बात हे जे खोरठा भासा आंदोलनें सबले बेसी कुरमी जाइतेक विदवान आर कवि कलाकार सबो रहल हथ।
खोरठा भासाक उदभव आर विकास किताब लिखवइया डा0 बी0एन0 ओहदार, पानुरी जीक बाद सबले लोकपिरिय खोरठा कवि श्याम सुन्दर महतो ’श्श्याम’, खोरठाक पहिल उपनियासकार आर पहिल खोरठा प्रोफेसर चितरंजन महतो ’चित्रा’, धनपत महतो, गोबिद महतो ’जंगली’, कैलाश महतो, डाॅ0 गजाधर महतो ’प्रमाकर, फुलचंद महता,े रामटहल ओहदार, प्रो0 बीरबल महतो, प्रो0 नागेश्वर महतो.....आर कते-कते।
कुरमी जाइते नाम जइजका राजनेता स्वनाम धन्य बिनोद बिहारी महतो जी खोरठा साहित के फले-फुले में सब दिन जोगदान देला आर श्रीनिवास पानुरी, नारायण महतो, नरेश नीलकमल, विश्वनाथ नागर रकम पुरना परियाक लोक के खोरठा भासा आंदोलने सहजोग करल हला।
आइझेक समयें कुरमाली आर खोरठा के कागजी रूपें भिनु माइनता हे, आपन-आपन छेतरें सब जाइतेक लोक ई भासाक मातरी भासाक रूपें परजोग कइर रहल हथ। विश्वविद्यालयें भिनु-भिनु विभाग हइ, आपन सिलेबस हइ,एकर में कोन्हों बिरोध के गुंजाइस नखे, फेर कोन्हों कुरमी जाइतेक लोक के इटा बाइध कइर बोलवेक चेस्टा की सब कुरमीक कुरमालीए बोले चाही! ई बुरबकाली हे आर गेजा हठ के छाड़ा कुछ नाय हके।
ई लेताइरें हालेक एगो घटना के उल्लेख करेक टा जुइतगर आर बतरगर बुझो हों। पइछला उत्क्रमित हाई स्कूलें एगो कुरमाली भाषा शिक्षक के बहाली धनबाद जिलाक खोरठा छेतरें कइर देल गेल हलइ। दू बछर तक ओकरा ऊ स्कूलें एको कुरमाली भासाक बिदियारथी नाय भेंटाइलइ। सेसें ऊ आवेदन लिखल जे ‘मुझे कुरमाली क्षेत्र में पदस्थपित किया जाए’। ओकर आवेदनें स्थानीय विधायक के अनुशंसा से ओकर पोस्टिंग सराइकेला के कोनो इस्कूलें भइ गेलइ। मालूम हवेक चाही जे धनबादेक ऊ छेतर टा कुरमी बहुल लागे आर अनुशंसा करवइया बिधायको कुरमीए लागथ।
भासा, जाइत आर धरम भिनु-भिनु जिनिस हे। बंगलादेश दुनियाक सामने एते बोड़ उदाहरन हे तकर पर्हूं जोदि केउ ई रंग काम के बढ़ावा दे हे तो साधारन जने एकर संग नाय देता। कुरमीक भासाक रूपे के नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनियाँ, मगही, भोजपुरी, बंगला चाहें अंग्रेजी कही भिनु-भिनु नामें जगतें थान बनाइ देल हथ लोक तो ओकर भिनु असतित्व के स्वीकार कइर लिएक चाही कुरमाली परेमी के, सह असतित्व के बोध राइख, नाय तो पागलाइ मोरता, ओहे बेंग नियर जे हाथी से लड़े खातिर पेट फुलाइ मोरल हल। एक संगे झारखंडेक आन सब सदानी भसवइन के खाय पोचावेक खेमोता कोन्हों एगो भासाँइ नाय, से लेल सह अस्तित्व के भावना राइख आपन मातरी भासाक विकासें समरपित हवा। आन सदानी भसवइन के आपन सहोदर भाय माना, जोदी भाय मानइतें छोट बुझा हो तो बापे माइन खुस रहा मेनेक भिनु हे इटा स्वीकार करा, नाय तो मने-मन गुड़-चिड़ा खा। ककरो आँइख नुइम लेल से दुनियाइं अंधार नाय हवे, बिचकुन ओहे कुछ देखे नाय पावे।
एहे लेताइरें कुरमी जाइतेक एगो नामजइजका खोरठा साहितकार आर पूर्व विश्वविद्यालय शिक्षक डाॅ0 बी0एन0 ओहदार जी चुटकी लइ कहला,’ कुरमीक आदिवासीक दरजा देल गेलें खोरठा बोले वाला कुरमीक की आदिवासीक दरजा नाय देल जीतइ? खोरठा बोले वाला कुरमीक आदिवासीक पावाइ वाला लाभ नाय मिलतइ की?’
सभे कुरमी कुरमाली नाय बोल-हथ, कुरमाली बोले वाला सभे कुरमी नखथ, माने कुरमाली खाली कुरमीक भासा नाय, माने कुरमीक आदिवासी बने खातिर कुरमालीक दरकार नाय!
कुरमी आदिवासी बने बा नाय बने इटा भिनु मुददा हे, एकर कुरमाली भासा सें कोन्हों लेना-देना नाय।
आइज चालीस बछर ले कुछेक कुरमाली विदवान खोरठाक कुरमाली कइह के हड़पेक चेस्टा करला आर एखनु ई जहर नोउतन पिढ़ीक कुछ कुरमी गीदरें देखल जा हे, जकरा खोरठा भासी कुरमी विदवाने नकाइर देल हथ। जोदि कुरमाली भासी कुरमी सब खोरठा के नकाइर दे हथ तो उसभेक आपन मामा, मोसा आर फुफा घर जाय के हिंदी चाहें अंग्रेजी में बइजके हतइ, काहे जे खोरठा भासी कुरमी तो कुरमाली बइजके पारथ नाय!
आइज नजर गाब्चाइ देखेक दरकार हे जे ई चालीस बछरेक भासा-साहित आंदोलने कुरमाली कहाँ हे आर खोरठा कहाँ। आइज सब जाइतेक सहभागिताक चलते खोरठा झारखंडेक सबले पसरल छेतर आर सबले भोरल पूरल साहित के धनी हें एकर आर एगो परमान हे, झारखंडें परतिजोगिता परिछें खोरठा भासा-साहित लिये वालाक सबले बेसी भागीदारी!
- ’आकाश खूँटी’
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